पानीपत का तृतीया युद्ध (Panipat ka Tritiya Yuddh – आज हम इस लेख में पानीपत का तृतीया युद्ध (Panipat ka Tritiya Yuddh) के बारे में जानने वाले है। जब हम हाई स्कूल में रहते है तभी से हमें पानीपत का युद्ध के बारे में पढ़ने को मिल जाता है। यह हमारे आगे की पढ़ाई में भी इतिहास बिषय में पढ़ना होता है।
वैसे में यदि आप पानीपत का तृतीया युद्ध (Panipat ka Tritiya Yuddh) के बारे में पढ़ने के लिए आए है तो आप सही जगह पर है। इस लेख के माध्यम से आपको पानीपत का तृतीया युद्ध के बारे में सभी जानकारी जैसे पानीपत का तृतीया युद्ध के कारन क्या था?, पानीपत की तृतीया युद्ध कब हुआ था? इसके साथ ही हम जानेंगे की पानीपत की तृतीया युद्ध किसके बिच हुआ? तो कृपया आप इस लेख को अंत तक पढ़े।
पानीपत का तृतीया युद्ध – Panipat ka Tritiya Yuddh
पानीपत का तृतीय युद्ध 14 जनवरी, 1761 में पानीपत नाम के स्थान पर हुआ था। जो की यह युद्ध तीसरी बार हुआ जिसके कारन इसका नाम पानीपत का तृतीय युद्ध (Panipat ka Tritiya Yuddh) हो गया। दिल्ली से पानीपत 95.5 कीमी दुरी पर स्थित है। पानीपत का युद्ध मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ और अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली के साथ हुआ था। अहमद शाह अब्दाली को अहमद शाह दुर्रानी के नाम से भी जाना जाता है।
यह युद्ध पानीपत नाम के स्थान पर हुआ था। जो वर्तमान समय में हरियाणा में स्थित है। पानीपत युद्ध में गार्दी सेना प्रमुख इब्राहीम ख़ाँ गार्दी ने मराठों का साथ दिया तथा दोआब के अफगान रोहिला और अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने अहमद शाह अब्दाली का साथ दिया।
यह युद्ध 18वीं सदी सबसे बड़ा युद्ध था। जिसमे दो सेनाओं के बीच युद्ध में एक ही दिन में सबसे बड़ी संख्या में मौतें हुई थी। ये युद्ध एक लम्बे समय तक चलने वाला युद्ध था। अंत में मराठा साम्राज्य की हार हुई अहमद शाह अब्दाली की जीत हुई।
युद्ध – Panipat ka Tritiya Yuddh
मराठों के पास उत्तर भारत में दिल्ली ही एक ऐसा जगह था जंहा उनकी धनापूर्ति का एकमात्र साधन थी। लेकिन अहमद शाह अब्दाली को रोकने के लिए मराठों ने यमुना नदी के पहले एक सेना तैयार की थी। लेकिन फिर भी अहमद शाह अब्दाली नदी पार कर ली थी। किसी गद्दार की गद्दारी की वजह से मराठों कि वास्तविक जगह और स्तिथी का पता लगाने में अहमद शाह अब्दाली सफल रहा ।
जब वापिस मराठों कि सेना मराठवाड़ा जा रही थी, तो उन्हें पता चला कि अहमद शाह अब्दाली उनका पीछा कर रहा है। तबमराठों ने युद्ध करने का निश्चय किया। एक तरफ अहमद शाह अब्दाली ने दिल्ली और पुणे के बीच मराठों का संपर्क काट दिया था। तो दूसरी तरफ मराठों ने भी अहमद शाह अब्दाली का संंपर्क काबुल से काट दिया था। इससे यह तय हो गया था की जिस भी सेना को पूर्ण रूप से भोजन और जल की आपूर्ति होती रहेगी वह युद्ध जीत जायेंगे।
14 जनवरी 1761 दिन बुधवार को लगभग एक महीने तिस दिन की मोर्चा बंदी के बाद दोनों की सेना आमने-सामने युद्ध के लिए आई। मराठों के पास खाद्य-पदार्थ सप्लाई हो नहीं रही थी जिसके कारन उनकी सेना में भुखमरी फैल रही थी। लेकिन अहमद शाह अब्दाली को अवध और रूहेलखंड खाद्य-पदार्थ सप्लाई हो रही थीं।
युद्ध में विश्वासराव को लगभग 1:00 से 2:30 के बीच एक गोली उनके शरीर पर लगी जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई। जब सदाशिवराव भाऊ अपने सवारी हाथी से उतरकर विश्वासराव को देखने के लिए मैदान में पहुंचे तो उन्हें वे मृत पाया।
जब बाकी मराठा सरदारों ने देखा कि सदाशिवराव भाऊ अपने हाथी पर नहीं है तब सभी सेना में हड़कंप मच गया। जिसके कारन सेना का कमान न होने के कारन सेना में हल चल मच गई और सभी सैनिक भागने लगे। इस भाग दौर में कई सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए। लेकिन सदाशिवराव भाऊ अपनी अंतिम श्वास तक युद्ध लड़ते रहे।
युद्ध में शाम होते होते लगभग सभी मराठा सेना खत्म हो गई। अहमद शाह अब्दाली ये सभी देख एक अच्छा मौका समझा और पंद्रह हजार सैनिक जो की आरक्षित रखे गए थे। उन सभी सैनिको को युद्ध के लिए भेज दिया गया। जिसके कारन मराठा सैनिक में जो भी सैनिक बचे थे ये पंद्रह हजार सैनिको उनको ख़त्म कर दिए।
साथ गई 20 मराठा स्त्रियों को मल्हारराव होळकर वहाँ से पेशवा के वचन के कारण बहुत ही कूटनीति से निकालकर लेकर आए। युद्ध से सिंधिया और नाना फडणवीस भी यहाँ से भाग निकले। इस युद्ध में विश्वासराव पेशवा, सदाशिवराव भाऊ तथा जानकोजी सिंधिया भी इस युद्ध में मारे गए। इब्राहिम खान गार्दी जो की युद्ध में तोपखाने की कमान संभाले हुए थे उनकी भी इस युद्ध में मृत्यु हो गई।
पानीपत का तृतीया युद्ध में मराठों की पराजय के कारण क्या था?
मराठों की पराजय का एक कारण यह माना जाता है कि पेशवा बालाजी बाजीराव ने रघुनाथ राव, महादजी सिंधिया अथवा मल्हार राव होलकर के बदले भाऊ सदाशिवराव को सेनापति बना कर भेजा था। जबकि ये तीनों ही उस समय उत्तर भारत में मराठा सेना का नेतृत्व करने में सक्षम थे।
युद्ध के बाद हुआ तीर्थयात्रियों का नरसंहार
40000 तीर्थयात्रियों मराठा सेना के साथ उत्तर भारत यात्रा करने के लिए गये थे उनको पकड़ कर उनको मार दिया गया। एक लाख से अधिक लोग इस युद्ध में मारे गए। ये सभी बात जब पुणे पहुंची तो बालाजी बाजीराव के गुस्से का ठिकाना नहीं रहा तब वे बहुत बड़ी सेना लेकर पानीपत की ओर जाने लगे लेकिन जब यह खबर अहमद शाह अब्दाली को मिली तो उसने खुद को रोक लिया। क्योंकि उसकी सेना में भी हजारों का नुकसान हो चुका था और सेना लड़ने के लिए तैयार नहीं थी।
जिसके बाद अहमद शाह अब्दाली 10 फरवरी 1761 को पेशवा को पत्र लिखा कि “मैं जीत गया हूँ लेकिन दिल्ली की गद्दी नहीं लूगा, आप ही दिल्ली पर राज करें मैं वापस जा रहा हूँ।” भेजा हुआ पत्र जब बालाजी बाजीराव ने पढ़ा तो वे वापस पुणे लौट गए। लेकिन 23 जून 1761 में बालाजी बाजीराव मानसिक अवसाद के कारण मृत्यु हो गई। क्यूंकि युद्ध में वे अपना पुत्र और अपने कई मराठा सरदारों को खो दिया था।
पानीपत का तृतीय युद्ध के कारन क्या था?
पानीपत का तृतीय युद्ध के कारन निम्नलिखित है।
दत्ताजी सिन्धिया की हत्या
1760 के युद्ध में दत्ता जी सिन्धिया की पंजाब मृत्यु हो गई। दत्ता जी सिन्धिया की हत्या पानीपत तृतीय युद्ध का प्रमुख़ कारण था। जिसके बाद मराठों द्वारा अहमद शाह अब्दाली से बदला लेने के लिए मराठों ने विशाल सेना अहमद शाह अब्दाली पर आक्रमण करने के लिए भेजीं।
मुगल सम्राट द्वारा अपने सुबेदारो के माध्यम से मराठों के खिलाफ भड़काना
दिल्ली का मुगल सम्राट वैसे तो वे पहले से ही निर्बल था। लेकिन फिर भी उसने अपने सूबेदारों के माध्यम से मराठों के ख़िलाफ़ भड़काकर मराठों को लड़ने के लिए प्रोत्साहित करना है। जिसके बाद मराठों दिल्ली के मुगल सम्राट पर आक्रमण कर दिया। जिसका परिणाम यह हुआ की दिल्ली का मुगल सम्राट पहले से भी अधिक कमजोर हो गया। ये सभी परिणाम देख मुगल सम्राट इसे स्वीकार नहीं कर पाया और अंत में अहमद शाह अब्दाली युद्ध के लिए तैयार हो गया।
मराठों द्वारा राजपूतों की आंतरिक समस्याओं में हस्तक्षेप
जब मराठों ने दिल्ली को पराजित किया उसके बाद उन्होंने राजपूतों की आंतरिक समस्याओं में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। मराठों ने उनसे चौथ और सरदेशमुख कर वसूल करने लगे। जिसके कारन ये भारत की एकता को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई यह भी एक कारन रहा पानीपत के तृतीय युद्ध का कारन था।
औरंगजेब द्वारा धर्मान्ध अत्याचार
भारत में इस्लामी औरंगजेब द्वारा उसके शासन में धर्मान्ध अत्याचार के माध्यम से हिन्दुओं और शिया मुस्लिमों पर भी अत्याचार किया गया। ये अत्याचार सर्वाधिक उत्तर भारत के क्षेत्रों में औरंगजेब के द्वारा किया गया। जिसके कारन भारतीयों की संघर्ष की क्षमता कम हो गई और वे युद्ध के समय दिल्ली सरकार का साथ नहीं दिया।
नादिरशाह और अहमदशाह के अत्याचार
साल 1739 में नादिरशाह ने मुगल सम्राट पर आक्रमण कर दिया। उसने सम्राट के सैनिकों, राजनीतिक और आर्थिक शक्तियों के साथ सम्पूर्ण नागरिकों पर भी अत्याचार किया। जिसमें कई सूबेदार सम्राट से शक्तिशाली थे। जिसके कारन मराठों ने सम्राट को अपने अधीन करने का प्रयास किया। नादिरशाह के बाद अफगानिस्तान का शासक अहमदशाह अब्दाली बना अहमदशाह अब्दाली मुगल शक्ति पर आक्रमण करके संपूर्ण मुग़ल साम्राज्य के जीवन को अस्त-व्यस्त करके रख दिया।
सूरजमल जाट द्वारा अहमदशाह अब्दाली को ललकारना
अहमदशाह अब्दाली द्वारा सूरजमल जाट से भेंट मांगी तो सूरजमल ने अहमदशाह को यह कहकर ललकारा की आप उत्तर भारत से मराठों को भगाकर अपनी वीरता दिखाएँ और खुद को राजा सिद्ध करें, तभी मैं आपको भेंट देंगे। अन्तः यह चुनौती अहमदशाह अब्दाली को युद्ध करने के लिए मजबूर कर दिया जिसके बाद अहमदशाह अब्दाली ने मराठों से युद्ध करने के लिए मजबूर कर दिया।
पानीपत का तृतीया युद्ध – Panipat Ka Tritiya Yuddh PDF Download
पानीपत का तृतीया युद्ध का PDF आप निचे दी गई लिंक के माध्यम से डाउनलोड कर सकते है। इसमें आपको पानीपत का तृतीया युद्ध के बारे में और भी अधिक जानकारी मिल जाएगी। जैसे पानीपत का तृतीया युद्ध के बाद मराठों का पुनरुत्थान, आधुनिक इतिहास की दृष्टि से पानीपत का तृतीया युद्ध कैसा रहा इत्यादि जानकारी आपको इस पीडीऍफ़ में मिल जायेगा।
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FAQs – Panipat ka Tritiya Yuddh
पानीपत की तृतीया युद्ध कब हुआ था?
पानीपत का तृतीय युद्ध 14 जनवरी, 1761 में पानीपत नाम के स्थान पर हुआ था। पानीपत वर्तमान समय में हरियाणा राज्य में स्थित है।
पानीपत की तृतीया युद्ध किसके बिच हुआ?
पानीपत का तृतीय युद्ध मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ और अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली के साथ हुआ था।