बिरसा मुंडा पर निबंध (Birsa Munda Par Nibandh) – आज हम इस लेख के माध्यम से बिरसा मुंडा पर निबंध (Birsa Munda Par Nibandh) लिखने वाले है। यदि आप भी बिरसा मुंडा पर निबंध लिखना चाहते है तो आप इस लेख को अंत तक पढ़े। आप इस लेख में बिरसा मुंडा पर निबंध 300 शब्दों में, बिरसा मुंडा पर निबंध 250 शब्दों में लिखने वाले है।
बिरसा मुंडा पर निबंध – Birsa Munda Par Nibandh
बिरसा मुंडा की जन्म, प्रांभिक जीवन एवं माता पिता – बिरसा मुंडा का जन्म 19वीं सदी के अंत में यानि 15 नवंबर 1875 में झारखंड राज्य के उलिहातु गाँव में हुआ था। बिरसा मुंडा भारत में झारखंड राज्य के एक आदिवासी नेता और स्वतंत्रता सेनानी थे। बिरसा मुंडा, मुंडा जनजाति के सदस्य थे। जो भारत के सबसे बड़े आदिवासी समुदायों में से एक है। इनके माता का नाम करमी मुंडा और पिता का नाम सुगना मुंडा था। बिरसा मुंडा अपना बचपन चलकद गाँव में बिताया था।
बिरसा मुंडा की शिक्षा – बिरसा मुंडा ने अपनी शिक्षा सलगा स्कूल से प्राप्त करना शुरू की। प्राथमिक शिक्षा के बाद अपर प्राइमरी शिक्षा के लिए बुर्जू मिशन स्कूल में अपना दाखिला लिया था। आगे की शिक्षा चाईबासा में रहकर उन्होंने उच्च प्राथमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त की थी। जिसके बाद वे अपनी आजीविका के लिए गौरबेडा के स्वासी परिवार में नौकरी करने लगे थे।
बिरसा मुंडा की विद्रोह एवं आंदोलन – बिरसा मुंडा को भारत में आदिवासी समुदाय के इतिहास में भगवान के रूप में याद किए जाते है। उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन और बाहरी लोगों द्वारा आदिवासी भूमि के शोषण के खिलाफ एक आंदोलन का नेतृत्व किया। बिरसा मुंडा का मानना था कि भारत में आदिवासी से अंग्रेजों और अन्य बाहरी लोगों द्वारा उन पर अत्याचार किया जा रहा था, जो उनकी जमीन और संसाधनों पर कब्जा कर रहे थे। उनका मानना था कि आदिवासी समुदायों को एकजुट होकर अपने शोषण और उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने की जरूरत है।
बिरसा मुंडा पर निबंध 300 शब्दों में – Birsa Munda Par Nibandh
बिरसा मुंडा आरंभिक जीवन – बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 में झारखंड राज्य के खुटी जिले के उलिहातु नाम के गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी मुंडा था। बिरसा मुंडा साल्गा गाँव में प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की उसके बाद इन्होंने चाईबासा G.E.L Church (Gossner Evangelical Lutheran) विद्यालय में पढ़ाई की थी। बिरसा मुंडा हमेशा अपने समाज में लोगो का भलाई करने में लगे रहते थे। ब्रिटिश शासकों द्वारा की गई अत्याचार के बारे में सोचते रहते थे।
बिरसा मुंडा की आंदोलन – 1 अक्टूबर 1894 बिरसा मुंडा ने एक नेता के रूप में कई आदिवासी लोगों को अपने आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अंग्रेजो से कर माफी के लिए आन्दोलन किया। उन्होंने 19वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेजों और उनके सहयोगियों के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया।
उन्होंने जनजातीय भूमि की बहाली और जनजातीय समुदायों के अधिकारों की मान्यता के लिए आह्वान किया। बिरसा मुंडा और उनके साथियों ने अंग्रेजों और उनके सहयोगियों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी, लेकिन अंत में वे हार गए उसके बाद 1895 में बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में उन्हें दो साल के कारावास की सजा दी गयी।
अपनी हार के बावजूद, बिरसा मुंडा की विरासत कायम रही थी। उनके विद्रोह ने कई अन्य आदिवासी नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों को भारत में आदिवासी समुदायों के अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखने के लिए प्रेरित किया। बिरसा मुंडा को आज भगवान के रूप में याद किया जाता है। उनकी विरासत को हर साल उनके जन्मदिन पर बिरसा मुंडा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
बिरसा मुंडा की अंत – जनवरी 1900 डोम्बरी पहाड़ पर बिरसा मुंडा अपनी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। तभी अंग्रेजों द्वारा बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ़्तार कर लिए गए। जिसके बाद बिरसा मुंडा को भी 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर के जमकोपाई जंगल से अंग्रेजों द्वारा गिरफ़्तार कर लिया गया।
बिरसा मुंडा ने अपनी अन्तिम साँसें 9 जून 1900 में राँची जेल में ली थीं। उन्हें आंग्रेजों द्वारा जहर देकर मार दिया गया था। बिरसा मुंडा को आज भी झारखंड, बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है।
बिरसा मुंडा पर निबंध 250 शब्दों में – Birsa Munda Par Nibandh
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1857 ई. में बहुत ही निर्धन परिवार में हुआ था।बिरसा मुंडा को आदिवासियों द्वारा भगवान माना जाता है। झारखंड, बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में इनकी पूजा भी की जाती है। आजादी की लड़ाई हो या अंग्रेजो के खिलाफ कर माफी की लड़ाई हो बिरसा मुंडा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
G.E.L Church विद्यालय में पढ़ाई करने के बाद वे अपनी आजीविका चलाने के लिए के लिए गौर पेड़ा के स्वामी परिवार में नौकरी करने लगे। जिनके मालिक का नाम आनंद पांडे था। साथ ही वे अपने गांव के लोगो की सेवा भी करते थे। साथ ही वे अपने गांव के लोगो की सेवा भी करते थे। वे एक समाज सेवी आदमी भी थी।
उन दिनों भारत में अंग्रेजो का शासन था। अंग्रेज आदिवासियों की जमीनों को हथियाना चाहते थे। ये सब देख बिरसा मुंडा ने अपने कुछ अन्य मुंडा लोगों के साथ मिलकर अंग्रेजों का विरुद्ध लड़ने का निर्णय लिया।
बिरसा मुंडा भूमि का वास्तविक अधिकार मुंडा लोगों को दिलवाना चाहते थे। जिसके बाद उन्होंने अनेक विद्रोहों को उत्पन्न किया। आदिवासी लोग गरीब और अशिक्षित थे। बिरसा ने उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना बनाया। ताकि वे अपने अधिकार के लिए लड़े।
अंग्रेज बिरसा मुंडा के विद्रोह को रोकना चाहते थे। बिरसा मुंडा प्रारंभ में भी एक सुधारवादी थे बाद में वे अंग्रेज के खिलाफ बहुत सारे विद्रोह किए और लड़ाई लड़ने लगे थे। जिसके बाद बिरसा मुंडा को 3 फरवरी 1900 इ. को गिरफ्तार कर लिया गया था। गिरफ्तार उनको राँची के जेल में रखा गया जंहा उनकी मृत्यु 9 जून 1900 ई. को हो गई।
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निष्कर्ष – बिरसा मुंडा पर निबंध
उम्मीद है की आपको बिरसा मुंडा पर निबंध (Birsa Munda Par Nibandh) पसंद आया होगा। हमने इस लेख बिरसा मुंडा पर निबंध (Birsa Munda Par Nibandh) लिखा हैं। जिसमे बिरसा मुंडा के बारे सभी जानकारी जैसे बिरसा मुंडा के प्रांभिक जीवन, जन्म बिरसा मुंडा के माता पिता का नाम क्या था। बिरसा मुंडा की आंदोलन और अंत सभी जानकारी हमनी इस निबंध में लिखी है। आप हमें Facebook पर फॉलो भी कर सकते है।